कभी आते थे तुम्हारे साथ
बासंती हवा के झोंके,
सावन की बारिश की
रिमझिम फुहारें,
तुम्हारे होंठों से छू कर
भर जातीं थीं हथेलियाँ
मेहंदी के बूटोंसे।
बिना दस्तक के ही
खुल जाते थे किवाड़
और सामने तुम्हें देख
धड़क उठता था दिल
कानों में।
जाने कब,
जिंदगी के जंगल में
बिलाती चली गयीं
जिंदगी को जिन्दा रखने की
ये जरूरतें।
इंतजार तो अब भी
रहता है तुम्हारा ,
लेकिन अब
धड़कनों को
तुम्हारे आने का पता नहीं चलता।
Saturday, December 20, 2008
Wednesday, December 10, 2008
तेरे एक फोन से

कुछ देर के लिए तो
टूटे मेरे मन की जड़ता,
कुछ देर तक
जुगाली करती रहूँ
तेरी बातों की।
तालाब के निष्क्रिये पड़े पानी में
कंकड़ फेंकने से
जैसे उठती है लहरें
महसूसती रहूँ
तेरी बातों से उठती
तरंगों को।
तेरी खुश-खुश बातों से
पुँछ जाए
मेरे मन की उदासी,
बसा कर तेरे सपनों को
अपनी आखों में
ले आऊँ थोडी देर को
अपने होठों पर भी
मुस्कराहट।
पोंछ कर
आंखों के कोनों में
उतर आए पानी की
बूंदों को
फ़िर से लग जाऊं
घर के काम में
एक फोन तो कर।
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