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Thursday, October 30, 2008

जीने की वजह

अभी डरता है मेरा बेटा
मेरे मरने के नाम से ।
आँख में भर लेता है आँसू
सिरिंज में भरे हुए खून को
देख कर।
मैं समझाती हूँ उसे,
बड़े हो गए हो तुम,
अब जरूरत नहीं है तुम्हें मेरी,
पापा रख देंगे खाना बनानेवाली,
कपडे धोनेवाली
एक दाई।

वह नहीं सुनाता है मेरी बात
सर हिला देता है।
किसका हाथ पकड़ कर सोयेगा,
कौन सुबह सुबह मुंह चूम कर उठाएगा,
किसे सुनाएगा अपने सपने,
किससे बांटेगा अपने दिल की बात,
कौन देगा
उसके अनगिनत प्रश्नों के ऊत्तर।
सीधी सरल भाषा में समझा देता है
अपनी जरुरत।

चलो, जीने की एक वजह तो बाकी है।

7 comments:

अनुराग अन्वेषी said...

बहुत ही खूबसूरत कविता। अद्भुत। वाकई छोटी-छोटी बातें अचानक कितनी बड़ी बन जाती हैं। इतनी बड़ी कि उसके सामने मरने का इरादा बौना पड़ जाता है और जीने की वजह मिल जाती है। बहुत शानदार कविता।

रंजू भाटिया said...

किसे सुनाएगा अपने सपने,
किससे बांटेगा अपने दिल की बात,
कौन देगा
उसके अनगिनत प्रश्नों के ऊत्तर।

जीने की वजह खुदबखुद बयान करती है यह पंक्तियाँ ..इसी का नाम ज़िन्दगी है ..अच्छी लगी आपकी लिखी यह कविता अर्चना जी ..लिखती रहें

pranava priyadarshee said...

सबसे पहले तो ब्लाग जगत में आगमन पर बधाई और हार्दिक धन्यवाद. ऊब और दूब.. क्या बात है... अवसाद की स्थिति में भी उम्मीद की झलक दिखाने वाला ये ब्लाग लेकर आने के लिए आभार. और कविता तो क्या कहना... उम्मीद है अब इस ब्लाग पर ऐसी रचनाएं दिखती रहेंगी

Unknown said...

Gazab!
Ye kavita ek khushkhabri lekar aayi hai....
"Ek bacche ki jaruratoon ke piche chipe pyaar ne ek jindgi bacha li........"
Hum sabko badhai...

विवेक said...

ज़िंदगी खुद जीने की एक वजह है...और जो इस तरह की छोटी-छोटी वजह ढूंढता रहे, वही सही मायने में जी रहा है...अच्छा लगा...आपकी वजह...आपका जीना...

Pooja Prasad said...

अभी डरता है मेरा बेटा
मेरे मरने के नाम से...

हरेक पंक्ति एक मां की तकलीफ भरी मनस्थिति में ले जाती है अर्चना जी!बेहद मारमिक अभिव्यक्ति.

तो आप ब्लॉगजगत में नई हैं..आइए, आपका स्वागत है!!

हिन्दीवाणी said...

सिरिंज में खून...क्या बिम्ब उभारा है आप ने...दिल को छू गयी आप की कविता...ब्लॉग की दुनिया मैं आप का स्वागत है. मेरे ब्लॉग http://hindivani.blogspot.com पर भी आयें.