मेरे मालिक ,
लो मैं फिर प्रस्तुत हूँ
नाचने के लिए
तुम्हारे इशारों पर!
बहुत चाहा था मैंने,
झटक डालूँ
उन धागों को
जो बांधे हैं तुमने
मेरे हाथो से, पैरो से।
रच लूं एक नया आकाश
और खो जाऊं
उसकी निस्सीमता में!
लेकिन मेरे मालिक
मैं कहाँ से लाती
इतनी सामर्थ्य
वर्षो से अपाहिज बने
अपने हाथो में।
देखो, किस तरह लहूलुहान
अपने टूटे पंखो के साथ
पड़ी हूँ
इस पथरीली
रेतीली जमीन पर
भीख मांगती तुम्हारी दया की।
हाँ मेरे मालिक
स्वीकार कर लिया है मैंने
कि तुम नियंता हो मेरे
और मैं
कठपुतली तुम्हारी।