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Sunday, June 14, 2009

देह राग से परे

छुट्टी का एक दिन
मेरे साथ भी बिताओ जी!
नहीं, ऐसे नहीं।
देह राग से परे
सुनते हैं आज
कोई नया राग।
अच्छा, नहीं आता
तुम्हारी समझ में
ऐसा कुछ?
ठीक, चलो देख आते हैं
शहर की रौनक।
तुम्हे पसंद नहीं भीड़- भाड़?
मुझे भी कहाँ पसंद है।
चलो ,चलते हैं
किसी सूनी सड़क पर
जहाँ बिछे होंगे
पलाश के फूलों के लाल गलीचे।
मत करना दफ्तर की बातें
बच्चों के भविष्य की बातें भी नहीं
कुछ कहना तुम
अपने मन की,
कुछ कह लूंगी
मैं अपने दिल की।
अच्छा, नहीं बची है अब
तुम्हारे पास कोई बात
और सुन चुके हो मेरी भी बहुत!
चलो ठीक है,
कुछ नहीं बोलेंगे हम,
बस, चलते रहंगे
एक दूसरे का हाथ पकडे
और सुनेंगे,
गिरते पत्तों की ताल पर
बहती हवाओं का संगीत!
क्या कहा तुमने?
जब चुप ही रहना है
तो क्या बुरा है घर?
ठीक है फ़िर
तुम खोल लो टी वी
और मैं खोल लेती हूँ
फ़िर से आज का अखबार।
दिन ही तो काटने हैं,
कट जायेंगे!