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Sunday, September 5, 2010

लड़की जो नहीं मिली

कभी हुआ करती थी/ कहीं एक लड़की/
एक छोटे से घर की/ बड़ी सी राजकुमारी/
आँखों में लिए हुए सपने/ सीने में भरे हुए/
उमंग और हौसला/ कर रही थी कोशिश/
अपनी संभावनाओं को/ संभव बनाने की/
कोई शिकायत नहीं थी/ कि/
सर पर कितनी तीखी है घूप/ या/ पैरों के नींचे/
कितने पथरीले हैं रास्ते/
थी सिर्फ एक चाहत/ जिंदगी को जियूं/
अपनी शर्तों पर/अपने मूल्यों पर/
जाने किधर से आया/ समय का पहिया/
हँसता हुआ/ उसके उमंग और हौसलों पर/
ढकता चला गया उसे/ परिस्थियों के गर्दो गुबार में/
गुबार के छटने पर/पीछे जो रह गयी/वह थी/
समय के पहिये के नींचे/ कुचली हुई/
सहमें कन्धों और/ झुके हुए सर वाली/
एक औरत/ देती रही देर तक/ आवाजें/
आ मिल जा री/ ओ लड़की/
तूं तो प्राण थी मेरा/ रह गयी हूँ मैं/
तेरे बिना/ सिर्फ एक शरीर हो कर/
ढूढती रही उसे वो/ पागलों की तरह/
चावल की बोरियों के पीछे/
आटे के कनस्तरों के नीचे/
धोबी की बही में/ राशन की लिस्ट में/
अगरबत्ती के धुएं में/ बिस्तर पर फैले/ पुरुष की बाहों में/
गोद में सोये/ शिशु की आखों में/ नहीं मिली वो/
कहीं नहीं मिली/अब भी प्रतीक्षा/ कर रही है उसकी/
उम्र के किसी मोड़ पर/ कभी तो मिल जाये/ कहीं/
एक बार लिपट कर/ उसके गले से/
रो तो ले/ जी भर के।

5 comments:

रंजू भाटिया said...

कहीं मिले यह लड़की तो बताये ...बहुत बहुत पसंद आई यह रचना

अनिल कान्त said...

दिल को बहुत गहरे तक स्पर्श करती है, यह कविता

neelima garg said...

bahut sundar....

प्रतिभा सक्सेना said...

आज आपके ब्लाग पर आई - दो-तीन रचनाएं पढ़ीं .
बहुत अच्छा लगा .फिर आऊँगी .

दीपशिखा वर्मा / DEEPSHIKHA VERMA said...

"ढूढती रही उसे वो
पागलों की तरह
चावल की बोरियों के पीछे
आटे के कनस्तरों के नीचे
धोबी की बही में
राशन की लिस्ट में
अगरबत्ती के धुएं में
बिस्तर पर फैले
पुरुष की बाहों में
गोद में सोये
शिशु की आखों में
नहीं मिली वो
कहीं नहीं मिली "


बहुत अच्छा ..मैं भी ढूँढ रही हूँ कि मिलेगी वो एक खुले आकाश में !