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Monday, November 10, 2008

उन सबों को जिन्होंने हौसला अफजाई की है

बलॉग क्या कम्पूटर की ही दुनिया में नई हूँ। बस कदम - कदम चलना सीख रही हूँ। कोशिश है कि गिरते पड़ते ही सही चलती रहूँ ताकि रख सकूँ अपना मन सबके सामने जो उमड़ता है , उफनता है और बिखर जाता है। चाहती हूँ बिखरने से बचा लूँ इसे क्योंकि जिन्दगी बहुत लम्बी है और न चाहते हुए भी इसे जीना तो है ही। डरने लगी हूँ कि माँ कि तरह हर एक दिन मृत्यु कि प्रतीक्षा में जीते हुए न गुजरे, इसलिए जिन्दगी को जीने कि कोशिश जारी है। बस, आज इतना ही।

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