अब नहीं आते हो भइया
तुम सपनों में।
वे सपने
जिनमें मैं फंस जाती थी
किसी सूनी सड़क पर,
बारिश से नहाये
हरे- हरे लंबे पेड़ों
और डराते काले बादलों के बीच
जब मेरे सामने आ जाती थी
एक गहरी नदी
और इस पार डरती- कांपती खड़ी मैं
सोचती रहती थी कैसे जाऊँ उस पार!
और फ़िर
जाने कहाँ से
तुम आ खड़े होते नदी के उस किनारे,
कूद कर नदी में
बढ़ाते अपना हाथ
और पकड़ कर तुम्हारा हाथ
मैं पार कर जाती थी
भय की उस नदी को।
फ़िर भागते चले जाते हम
एक-दूसरे का हाथ पकड़े
उस घर को
जहाँ माँ कर रही होती थी हमारा इंतजार।
सपने में तुम
तब भी आते रहे भइया
जब तुमने पकड़ा दिया मेरा हाथ
एक अजनबी को
और विदा करते हुए मुझे
कहा अब यही चलेगा तेरे साथ
तेरे सपनों में।
लेकिन घबराकर
उन अजनबी रास्तों के गुंजलक से
मैं फ़िर पहुँच जाती
सपनों में
तुम्हारे पास
और पकड़ कर तुम्हारी उंगली
अपनी मुट्ठी में
निश्चिंत हो लेती
सुरक्षा के उस एहसास में।
लेकिन जब
तुमने मिटा डाले मेरे सारे निशाँ
जो देते थे गवाही
घर में मेरे होने की,
और खींच ली
अपनी वो ऊंगली
जो बंद थी मेरी मुट्ठी में
पारस की तरह।
मैं टटोलती रही
बहुत दिनों तक
अपनी खाली मुट्ठी को
और जूझती रही
सपनों की उस गहरी नदी से,
फ़िर एक दिन देखा
ख़ुद ही पहुँच गई हूँ उस किनारे
पार कर गई हूँ भय की नदी।
सपने तो
अब भी आते हैं भइया,
लेकिन
अब तुम नहीं आते हो
सपनों में।
9 comments:
बहुत सुन्दर, प्रेम दिवस की शुभकामनाएं
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गुलाबी कोंपलें
सपने तो
अब भी आते हैं भइया,
लेकिन
अब तुम नहीं आते हो
सपनों में।
-बहुत भावपूर्ण-उम्दा रचना.
बहुत भावपूर्ण रचना है।्दिल को छूती हुई।
सपने तो
अब भी आते हैं भइया,
लेकिन
अब तुम नहीं आते हो
सपनों में।
वाकई, बहुत ही प्यारी और कोमल कविता। मुमकिन है भाई ने चाहा हो कि उसकी बहन समस्याओं की नदीं को अपने बल पर पार करना सीख ले। हां, यह जरूर है कि सिखाने का तरीका बेहद कठोर है। पर इस कठोरता के पीछे छुपी भावना खुश करने वाली है।
बहुत सुंदर रचना .
बधाई
इस ब्लॉग पर एक नजर डालें "दादी माँ की कहानियाँ "
http://dadimaakikahaniya.blogspot.com/
लेट हो गई इस को पता नही कैसे पढने में ..
मैं टटोलती रही
बहुत दिनों तक
अपनी खाली मुट्ठी को
और जूझती रही
सपनों की उस गहरी नदी से,
फ़िर एक दिन देखा
ख़ुद ही पहुँच गई हूँ उस किनारे
पार कर गई हूँ भय की नदी।
बहुत भावपूर्ण अर्थपूर्ण लिखा है आपने इस कविता में ..
dnt know what kept me away 4m reading this lovely composition of urs , for so long.
hw did u read out my heart mom?
because u r a part of my heart, beta.
Pata nahi kyun, ya shayad pata hai kyun.. jab tab yunhi ye kavita padh leti hoon. aur har baar , pahli baar jitnai achchhi lagti hai ye.
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