ठिठकने लगी है उंगलियाँ अब
तुम्हारे नाम से दो शब्द
लिखने के बाद।
रुक जाती हूँ
फोन के बटन दबाते- दबाते।
तुमसे दो बातें कर लेने की इच्छा
लम्बी साँस बन कर
हवा में घुलने लगी है
सामने पड़ा चाय का एक
खाली कप भी
कुछ नहीं कहता,
अब अकले पी लेने की
आदत पड़ गई है।
5 comments:
narayan narayan
अपने मनोभावों को सुन्दर शब्द दिए हैं।
achcha likhti hain aap...kabhi chaurahe (www.chauraha1.blogspot.com) par bhi aayen...achcha lagega...
Waah ! Bahut bahut sundar abhivyakti hai...Bahut hi sundar.
बहुत सुन्दर कविता
Post a Comment