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Sunday, November 9, 2008

पेट के जाये से

कल ही तो गया है तू
और मैं गिनने लगी हूँ
तेरे लौटने के दिन,
क्योंकि जब तू लौटेगा
फ़िर हँसने लगेंगे
मेरे दिन, और
गपिआने लगेंगी रातें
कि फ़िर से बाँट सकूंगी
मैं तुमसे,
उतने दिन के सुख
और दुःख,
सुबह में देखे सपने,
किसी फ़िल्म की कहानी,
किसी उपन्यास से
उपजे विचार,
अपनी कल्पनाएं,
मुहल्ले के समाचार,
रिश्ते नातों की
शिकायतें।
हर वो बात
जो मैं कहती रहूंगी
ख़ुद से,
तेरे लौटने तक।
तू,
जो जाया है
मेरे पेट का।

11 comments:

Pooja Prasad said...

xcellent! कविता इतनी करीब सी लगी मन को कि अर्चना जी बस यही कह पा रही हूं कि जब जब किंही कारणों से मां की बेस्ट फ्रेड यानी मैं उंहें समय नहीं दै पाती हूं..तो लगता है वे मुझसे ऐसे ही कुछ कह रही होती हैं..

बहुत सादगी और कसाव के साथ आपने कई मांओ के मन की बात रख दी..

अनुराग अन्वेषी said...

वाकई बावली होती है मां

KK Mishra of Manhan said...

मुझे अगर वर्ष की बेहतरीन कविता का अवार्ड देना होता तो यकीनन आप की कविता उसके लायक होती आप खालिस साहित्यकार लगती है दिल को कचोटने वाले शब्द ..........मार्मिक........वाह खूब लिखा........
०९४५१९२५९९७

Unknown said...

aapko padkar bahut achha laga......
maaa ko lakar achha likha hai....krapya bane rahe....


Jai Ho Magalmay Ho

दिगम्बर नासवा said...

बहुत ही मोलिक सोच अदबुध कल्पना

कविता कहने का ढंग भी निराला
स्वागत है

makrand said...

bahut sunder rachana

Amit K Sagar said...

ब्लोगिंग जगत में आपका स्वागत है. खूब लिखें, खूब पढ़ें, स्वच्छ समाज का रूप धरें, बुराई को मिटायें, अच्छाई जगत को सिखाएं...खूब लिखें-लिखायें...
---
आप मेरे ब्लॉग पर सादर आमंत्रित हैं.
---
अमित के. सागर
(उल्टा तीर)

Abhi said...

Dil ko chu liya aapke shabdon ne. Shubhkaamnaon sahit swagat mere blog par bhi.

Anonymous said...

khoobsurat kalpana{kaiyo ke liye hakeekat hogi} ko achchhi tarah shabdo me bandha hai.
Archana ki ek utkrist rachana.


---------------------"vishal"

प्रदीप मानोरिया said...

कविता कहने का ढंग भी निराला
स्वागत है

रंजू भाटिया said...

आपकी कविता बहुत ही दिल के करीब लगी ..बेहद खुबसूरत लिखती हैं आप