ऊब और दूब पढ़ें, आप अपनी लिपि में (Read uub aur doob in your own script)

Hindi Roman(Eng) Gujarati Bangla Oriya Gurmukhi Telugu Tamil Kannada Malayalam

Monday, November 17, 2008

काश

कोई एक दिन जिउं
अपने मन का,
रात देखे सपने के साथ
सुबह मुस्कुरा के जागूँ
और दिन के किसी खाली कोने में
खुली खिड़की के पार
उड़ जाऊं
किसी खुशनुमा ख्याल के साथ।

निकाल लाऊं
बक्से के किसी कोने में छिपी
कोई नाजुक-सी स्मृति,
और छू लूँ किसी
नर्म से एहसास को।

बदल के
बालों में बनी मांग को
आईने में देख लूँ जरा
अपना चेहरा
और मुस्कुरा लूँ
अपने बचपने पर।

बिस्तर में औंधे लेट कर
टांगो को हिलाते हुए
घड़ी की सुइयों से बेखबर
पढूं कोई कहानी।
एक दिन तो जिउं
अपने मन का।

4 comments:

रंजू भाटिया said...

बदल के
बालों में बनी मांग को
आईने में देख लूँ जरा
अपना चेहरा
और मुस्कुरा लूँ
अपने बचपने पर।

सच में ऐसे पल जीने को दिल चाहता है ...बहुत सुंदर लिखा है आपने

सुजाता said...

खूबसूरत कविता । बहुत छोटी सी चाहतों को पूरा करने के लिए भी कितने सालों इंतज़ार करती हैं स्त्रियाँ ,फिर भी इंतज़ार ही बचा रह जाता है ...

अर्चना said...

@ रंजना जी (रंजू भाटिया)
आपने अभी तक मेरी सभी कविताओं को पढ़ने का कष्ट किया है। आपकी लगातार सराहना ने सचमुच मेरी ऊर्जा बढाई है। बहुत बहुत धन्यवाद आशा है आगे भी आपके बहुमूल्य सुझाव मिलते रहेंगे।

परमजीत सिहँ बाली said...

सुन्दर रचना है।बधाई।