कुछ देर के लिए तो
टूटे मेरे मन की जड़ता,
कुछ देर तक
जुगाली करती रहूँ
तेरी बातों की।
तालाब के निष्क्रिये पड़े पानी में
कंकड़ फेंकने से
जैसे उठती है लहरें
महसूसती रहूँ
तेरी बातों से उठती
तरंगों को।
तेरी खुश-खुश बातों से
पुँछ जाए
मेरे मन की उदासी,
बसा कर तेरे सपनों को
अपनी आखों में
ले आऊँ थोडी देर को
अपने होठों पर भी
मुस्कराहट।
पोंछ कर
आंखों के कोनों में
उतर आए पानी की
बूंदों को
फ़िर से लग जाऊं
घर के काम में
एक फोन तो कर।
7 comments:
बहुत खूबसूरत शब्दों में मन की बात कही है आपने...मन भावन रचना...वाह.
नीरज
बहुत बढ़िया लगी आपकी यह कविता ...मन के भावों को बहुत अच्छे लफ्ज़ दिए हैं
बेहतरीन रचना!!!
भावुक कविता !
दिल को छूती हैं पंक्तियाँ !
मेरी शुभ कामनाएं
मन के भावों की सुंदर अभिव्यक्ति।
bahut he achhi rachna.
आपने तो मुझे अपने काव्यपाश में बाँध लिया, सच आगे सारी रचनाएँ पढ़ता ही जा रहा हूँ
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http://prajapativinay.blogspot.com/
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