ऊब और दूब पढ़ें, आप अपनी लिपि में (Read uub aur doob in your own script)

Hindi Roman(Eng) Gujarati Bangla Oriya Gurmukhi Telugu Tamil Kannada Malayalam

Monday, February 2, 2009

तुम होते हो तो

तुम होते हो तो
सब कुछ होता है,
दीवारों से घिरा ये मकान
एक घर हो जाता है
छत के अंधेरे कोने
रोशन हो जाते हैं
बंद दरवाजे के और
खींचे हुए परदों के पीछे
पलती खामोशी
कहानियाँ कहने लगाती हैं
तुम्हारी उँगलियों से छू कर
हर कल्पना
सजीव हो जाती है
भींगे बालों में
आईने के सामने बैठना
अर्थपूर्ण हो जाता है।
तुम होते हो तो
सब कुछ होता है ।

--एक बहुत पुरानी कविता

10 comments:

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

अच्छी रचना है.

अनिल कान्त said...

तुम होते तो सब कुछ होता .....बहुत खूब सुंदर रचना ...

अनिल कान्त
मेरा अपना जहान

makrand said...

bahut sunder rachana

Anonymous said...

एक पुराना गीत याद आ गया "तू जो नहीं है तो कुछ भी नहीं है, ये माना कि महफ़िल जवां है हँसीं है". वाही अंदाज़ यहाँ भी पा रहा हूँ. बहुत सुंदर. आभार.

संगीता पुरी said...

बहुत अच्‍छी रचना....

रंजू भाटिया said...

हर कल्पना
सजीव हो जाती है
भींगे बालों में
आईने के सामने बैठना
अर्थपूर्ण हो जाता है।
तुम होते हो तो
सब कुछ होता है ।

बहुत पुरानी कविता पर आज भी उतनी ही नई बात कहती है बहुत सुंदर लिखा है आपने

प्रताप नारायण सिंह (Pratap Narayan Singh) said...

जैसे यहसास ठंडी हवाओं की तरह मन को छू रहे हों.

निशा said...

वाह बहुत अच्छी कविता

Sanjay Grover said...

वैसे एक शेर ग़ालिब का यंू भी है:

न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो खुदा होता,
डुबोया मुझको होने ने, न होता मैं तो क्या होता।

Girindra Nath Jha/ गिरीन्द्र नाथ झा said...

और यदि तुम न होते तो क्या होता......आईने में ही संतोष करना पड़ता. भावपूर्ण कविता के लिए शुक्रिया।