तुम होते हो तो
सब कुछ होता है,
दीवारों से घिरा ये मकान
एक घर हो जाता है
छत के अंधेरे कोने
रोशन हो जाते हैं
बंद दरवाजे के और
खींचे हुए परदों के पीछे
पलती खामोशी
कहानियाँ कहने लगाती हैं
तुम्हारी उँगलियों से छू कर
हर कल्पना
सजीव हो जाती है
भींगे बालों में
आईने के सामने बैठना
अर्थपूर्ण हो जाता है।
तुम होते हो तो
सब कुछ होता है ।
--एक बहुत पुरानी कविता
10 comments:
अच्छी रचना है.
तुम होते तो सब कुछ होता .....बहुत खूब सुंदर रचना ...
अनिल कान्त
मेरा अपना जहान
bahut sunder rachana
एक पुराना गीत याद आ गया "तू जो नहीं है तो कुछ भी नहीं है, ये माना कि महफ़िल जवां है हँसीं है". वाही अंदाज़ यहाँ भी पा रहा हूँ. बहुत सुंदर. आभार.
बहुत अच्छी रचना....
हर कल्पना
सजीव हो जाती है
भींगे बालों में
आईने के सामने बैठना
अर्थपूर्ण हो जाता है।
तुम होते हो तो
सब कुछ होता है ।
बहुत पुरानी कविता पर आज भी उतनी ही नई बात कहती है बहुत सुंदर लिखा है आपने
जैसे यहसास ठंडी हवाओं की तरह मन को छू रहे हों.
वाह बहुत अच्छी कविता
वैसे एक शेर ग़ालिब का यंू भी है:
न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो खुदा होता,
डुबोया मुझको होने ने, न होता मैं तो क्या होता।
और यदि तुम न होते तो क्या होता......आईने में ही संतोष करना पड़ता. भावपूर्ण कविता के लिए शुक्रिया।
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